
Key Features of Ayurveda Best Sexologist in Patna Bihar India
आयुर्वेद का प्रमुख विशेषता: भारत के सीनियर व पटना, बिहार के सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट डॉ सुनील दुबे
नमस्कार दोस्तों, दुबे क्लिनिक (भारत का एक प्रमाणित आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक) में आपका स्वागत है। जैसा कि ज़्यादातर लोग आयुर्वेद की विशेषता के बारे में अक्सर पूछते हैं कि यह अन्य औषधियों से ज़्यादा फ़ायदेमंद कैसे है। इस सत्र में, हम उन सभी लोगों के लिए एक संक्षिप्त लेकिन बेहद ज़रूरी जानकारी लेकर आए हैं जो यौन समस्याओं से जूझ रहे लोगो को इसके बारे में सही-सही जानकारी मिल सके और वे अपने समस्याओं से हमेशा के लिए निजात पा सके।
हमारे विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य, जो भारत में सर्वश्रेष्ठ यौन रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, ने इस जानकारी को बहुत सरल शब्दों में हमारे साथ साझा किया है जिससे लोग आयुर्वेदिक उपचार की विशेषताओं को समझ सकते हैं और हमेशा के लिए एक स्वस्थ यौन जीवन जीने के लिए प्रकृति से जुड़ने के लिए प्रेरित हो सके। चलिए जानते है, आयुर्वेद के पांच विशिष्ट गुण जो किसी भी व्यक्ति को उसके यौन समस्या से छुटकारा दिलाने में हमेशा मदद करते है।
यौन स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद की शीर्ष 5 विशेषताएं:
जैसा कि हम सभी को पता होना चाहिए कि यौन स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता और जीवन शक्ति पर केंद्रित आयुर्वेद की मुख्य और सबसे प्रत्यक्ष चिकित्सा पद्धति वाजीकरण (जिसे वृष्य चिकित्सा भी कहा जाता है) है। वाजीकरण यद्यपि आयुर्वेद की प्राथमिक, स्वतंत्र शाखा है, जिसमें यौन स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण के लिए कई अन्य चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण की आवश्यकता होती है। यह विशिष्ट शाखा गुप्त व यौन रोगियों के लिए हमेशा महत्वपूर्ण चिकित्सा व उपचार को प्रदान करने में मदद करता है।
यौन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मुख्य आयुर्वेदिक उपचार और परस्पर जुड़े सिद्धांत इस प्रकार हैं:
वाजीकरण चिकित्सा (कामोत्तेजक चिकित्सा):
वाजीकरण चिकित्सा जिसे अक्सर कामोत्तेजक चिकित्सा के नाम से भी जाना जाता है, जिसका केंद्र बिंदु किसी भी यौन समस्या को जड़ से ठीक करने से संबंध रखता है। यह आठ प्रमुख चिकित्सा पद्धतियों (अष्टांग आयुर्वेद) में से एक है और यह पूरी तरह से पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन जीवन शक्ति, शक्ति और प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए समर्पित है। सरल शब्दों में कहे तो, वाजी शब्द का अर्थ होता है "घोड़ा" और करण का अर्थ है "शक्ति", जिसका अर्थ है घोड़े जैसी शक्ति और स्फूर्ति को पुनः प्राप्त करना।
उद्देश्य:
- इस चिकित्सा से स्तंभन दोष (ईडी), शीघ्रपतन और कम कामेच्छा जैसे यौन विकारों का उपचार किया जाता है।
- शुक्र धातु (प्रजनन ऊतक, जिसमें शुक्राणु और अंडाणु शामिल हैं) की गुणवत्ता और मात्रा में वृद्धि करने का कार्य करता है।
- स्वस्थ संतान पैदा करने के लिए एक स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति को बढ़ावा देता है।
- इसके विधियाँ में विशिष्ट हर्बल और हर्ब-खनिज तैयारियाँ (वृष्य सूत्र), साथ ही बस्ती (औषधीय एनीमा) जैसी विशिष्ट पंचकर्म चिकित्साएँ शामिल होते है।
रसायन चिकित्सा (कायाकल्प चिकित्सा):
आयुर्वेद के रसायन चिकित्सा को कायाकल्प चिकित्सा के नाम से भी जाना है। इसका मुख्य फोकस व्यक्ति के समग्र कायाकल्प, बुढ़ापा रोधी, और दीर्घायु एवं सामान्य शक्ति को बढ़ावा देने का कार्य है। यौन स्वास्थ्य से संबंध में, इस चिकित्सा को यौन स्वास्थ्य के लिए समग्र स्वास्थ्य का शिखर माना जाता है। रसायन चिकित्साएँ शरीर के सभी सात ऊतकों (धातुओं) को क्रमिक रूप से पोषण देती हैं, जिसमें अंतिम और सबसे परिष्कृत ऊतक शुक्र धातु (प्रजनन ऊतक) होता है। उच्च गुणवत्ता वाले प्रजनन ऊतक के उत्पादन के लिए सभी ऊतकों (रस धातु, या प्लाज्मा से शुरू) का एक मजबूत आधार आवश्यक है, जो वाजीकरण का प्रत्यक्ष लक्ष्य है।
उद्देश्य: ओजस (जीवन शक्ति और प्रतिरक्षा का सूक्ष्म सार) को बढ़ाता है, जो सीधे यौन शक्ति, सहनशक्ति और प्रबल कामेच्छा में परिवर्तित होता है।
कायचिकित्सा (आंतरिक चिकित्सा):
आयुर्वेद के शाखा कायचिकित्सा जिसे आंतरिक चिकित्सा भी कहा जाता है इसका मुख्य ध्यान शरीर के त्रिदोष तीन दोषों (वात, पित्त और कफ) और पाचक अग्नि (अग्नि) का उपचार और संतुलन करने पर होता है। यौन स्वास्थ्य से संबंध में देखा जाय तो, कई यौन रोग प्रणालीगत असंतुलन में निहित होते हैं। जैसे कि वात असंतुलन शीघ्रपतन और प्रदर्शन संबंधी चिंता जैसी स्थितियों को जन्म दे सकता है। खराब अग्नि (पाचन) से आम (विषाक्त पदार्थ) का संचय होता है, जो प्रजनन ऊतकों को पोषण देने वाले चैनलों को अवरुद्ध करता है। कायचिकित्सा शारीरिक दोषों को संतुलित करने का कार्य करती है।
उद्देश्य: इस चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ करना और प्रजनन प्रणाली में ऊर्जा के सुचारू उत्पादन और प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मूलभूत शारीरिक ऊर्जाओं को संतुलित करना होता है।
पंचकर्म (विषहरण और सफाई):
आयुर्वेद के विशिष्ट शाखाओं में से एक पंचकर्म चिकित्सा जिसे विषहरण और सफाई के नाम से भी जाना जाता है, इसमें पाँच अद्वितीय शुद्धिकरण और विषहरण प्रक्रियाओं का एक समूह होता है। इसका ध्यान शरीर में जमा हुए विष, गन्दगी को साफ़ करना होता है। यौन स्वास्थ्य से संबंध में, यह शक्तिशाली वाजीकरण या रसायन जड़ी-बूटियों के प्रयोग से पहले, शरीर के स्रोतों को साफ़ करने के लिए अक्सर पंचकर्म की आवश्यकता होती है।
उद्देश्य: पंचकर्म चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य प्रजनन मार्गों को अवरुद्ध करने वाले गहरे बैठे विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों को दूर करना है, जिससे शरीर यौन स्वास्थ्य उपचारों के पौष्टिक प्रभावों के प्रति ग्रहणशील बने। सामान्य प्रक्रियाओं में विरेचन (शुद्धिकरण) और विशिष्ट प्रकार की बस्ती (एनीमा) शामिल हैं।
ग्रह चिकित्सा (मनोविज्ञान/आध्यात्मिक उपचार):
आयुर्वेद के विशिष्ट शाखा में से एक ग्रह चिकित्सा जिसे मनोविज्ञान या आध्यात्मिक उपचार के नाम से भी जाना है। इस चिकित्सा मुख्य केंद्र बिंदु मनोवैज्ञानिक और मानसिक असंतुलनों को दूर करना होता है। यौन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से, आयुर्वेद मानता है कि भावनात्मक और मानसिक कारक (मानसिक करण) यौन रोग (जैसे, तनाव, चिंता, भय और आत्मविश्वास की कमी) के महत्वपूर्ण कारण हैं। योग, ध्यान व विशिष्ट आसन व्यक्ति के उन भावनात्मक और मानसिक विकारो को दूर करने में मदद करता है, जो उनके यौन स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे है।
उद्देश्य: ग्रह चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य आहार, विशिष्ट जड़ी-बूटियाँ (जैसे तनाव कम करने के लिए अश्वगंधा), ध्यान और जीवनशैली समायोजन जैसी तकनीकों का उपयोग करने पर केंद्रित होता है, जिससे व्यक्ति में भावनात्मक स्थिरता और मानसिक स्पष्टता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, जो एक स्वस्थ, पूर्ण अंतरंग जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता हैं।