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How to deal with Culture Specific Syndrome Dr Sunil Dubey

Best Sexologist in Patna, Bihar for Culture-Specific Treatment | Dr. Sunil Dubey

अगर आप कल्चर-बेस्ड सिंड्रोम या कल्चर-स्पेसिफिक सिंड्रोम से पीड़ित हैं तो यह जानकारी सिर्फ़ आपके लिए ही है। बेशक, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा-उपचार और यौन परामर्श आपको इस समस्या से निपटने में मदद करेगी। इसे ध्यान से पढ़ें और 100% शुद्ध और प्रभावी आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार के लिए सही सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से संपर्क करें।

संस्कृति-आधारित सिंड्रोम का इतिहास और सारांश:

धातु सिंड्रोम या धातु रोग आयुर्वेदिक उपचार और चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द है, जो अक्सर शरीर से महत्वपूर्ण तरल पदार्थ, विशेष रूप से वीर्य के नुकसान से संबंधित स्थितियों को संदर्भित करता है। हालाँकि यह एक संस्कृति-आधारित सिंड्रोम भी है, जो कि पुरुषों में होने वाला एक यौन समस्या है, खासकर युवाओं में। इस यौन समस्या के चिकित्सा व उपचार के लिए, पश्चिमी चिकित्सा में कोई वैध कारण उपलब्ध नहीं है। हमारे आयुर्वेद में इस यौन समस्या के लिए अपना दृष्टिकोण है, जो इस समस्या के निपटने के लिए पारंपरिक चिकित्सा व उपचार का माध्यम का अनुसरण करता है।

विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे जो पटना में सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट हैं, बताते हैं कि ज़्यादातर लोग इस यौन समस्या के बारे में पूछते हैं कि वे इस यौन समस्या को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं और किस दवा में इसका वास्तविक व स्थायी समाधान है। चुकि वे एक प्रमाणित और उच्च योग्यता प्राप्त आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं जो पुरुष और महिला में होने वाले सभी गुप्त व यौन समस्याओं के इलाज में विशेषज्ञ हैं। वे दुबे क्लिनिक में अभ्यास करते हैं जो भारत का नंबर वन आयुर्वेद और सेक्सोलॉजी चिकित्सा विज्ञान क्लिनिक है। हर दिन, वे इस क्लिनिक में लगभग 35-40 लोगों का इलाज करते हैं जबकि लगभग 100 लोग उनसे परामर्श करने के लिए फोन पर दुबे क्लिनिक से नित्य-दिन जुड़ते हैं।

उनका कहना है कि धातु सिंड्रोम का इतिहास दक्षिण एशिया की सांस्कृतिक मान्यताओं और पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के गहराई से जुड़ा हुआ समस्या है। इस तरह की यौन समस्या का पहला मामला भारत में 1960 के आसपास पहचाना गया था। "धातु" शब्द संस्कृत शब्द "धातु" से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है आवश्यक शारीरिक पदार्थ। हमारी पारंपरिक व आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में, वीर्य को शरीर के लिए एक महत्वपूर्ण "धातु" माना गया है। पारंपरिक दृष्टिकोण से देखे तो, यह हमारी सांस्कृतिक मान्यता से भी जुड़ा है जो यह दर्शाता है कि वीर्य की कमी से शारीरिक और मानसिक कमजोरी होती है और शरीर जीर्ण होता है। धातु सिंड्रोम का वर्णन हमारे प्राचीन ग्रंथ (चक्र संहिता) में भी किया गया है, जिसमें हमेशा शरीर में वीर्य को संरक्षित करने के महत्व पर विशेष जोर दिया गया है।

धात सिंड्रोम की मान्यताएँ:

"धातु सिंड्रोम" शब्द की औपचारिक खोज 1960 में एक भारतीय डॉक्टर ने किया था। इस सिंड्रोम के लक्षणों और प्रभावों के आधार पर, यह पाया गया कि इस सिंड्रोम के कारण व्यक्ति में थकान, कमजोरी, चिंता और यौन रोग जैसे मनोदैहिक लक्षण होते हैं। क्योंकि रोगियों द्वारा इसे रात में वीर्यपात, पेशाब और हस्तमैथुन के माध्यम से वीर्य की कथित हानि के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसे "संस्कृति-आधारित सिंड्रोम" माना जाता है, जहाँ यह संस्कृति मान्यताओं और प्रथाओं से बहुत प्रभावित होता है। चूँकि वीर्य हमारी संस्कृति मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, जहाँ इसे खो देने से हमेशा शारीरिक और मानसिक कमज़ोरी होती है। वीर्य के महत्व के बारे में सांस्कृतिक मान्यताएँ और इसके खोने की चिंताएँ इस सिंड्रोम के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

आधुनिक मतानुसार धात सिंड्रोम का परिप्रेक्ष्य:

हमारे विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य डॉ. सुनील दुबे, जो बिहार में सर्वश्रेष्ठ सेक्सोलॉजिस्ट हैं, कहते हैं कि उन्होंने अनगिनत धात सिंड्रोम रोगियों का इलाज किया है। हालाँकि उन्होंने सुरक्षित और प्रभावी आयुर्वेदिक चिकित्सा व उपचार के लिए इस संस्कृति-आधारित सिंड्रोम पर अपना शोध किया है, फिर वे प्रत्येक रोगी की अन्तर्निहित स्थिति को जानने के लिए गहन जांच करते हैं ताकि उनकी समस्या का वास्तविक कारण और मनोवैज्ञानिक व्यवहार को जान सकें जो उनकी समस्याओं से संबंधित होता हैं। उनका कहना है कि उनकी चिकित्सा समझ धात सिंड्रोम को मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारकों के एक जटिल अंतर्संबंध के रूप में पहचानती है जो व्यक्ति के प्रजनन प्रणाली, शारीरिक शक्ति और मानसिक क्षमता से जुड़े होते हैं।

धात सिंड्रोम के मामलों में, हमारी परंपरा व संस्कृति का मानना ​​है कि यह चिंता, अवसाद और सोमाटाइजेशन के दृढ़ता से जुड़ा हुआ मसला है। यह संभव है कि अन्य चिकित्सा विज्ञानों की अपनी राय अलग हो, लेकिन आयुर्वेद के पास इस यौन समस्या के लिए जिम्मेदार दोषों (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करने का केवल एक ही तरीका है। वैश्विक दृष्टिकोण से, हालाँकि यह समस्या दक्षिण एशिया में सबसे अधिक प्रचलित है, लेकिन वीर्य के नुकसान के बारे में इसी तरह की चिंताएँ पूरे इतिहास में अन्य संस्कृतियों में दर्ज की गई हैं।

धातु सिंड्रोम (संस्कृति-आधारित सिंड्रोम) के लिए आयुर्वेदिक उपचार:

डॉ. सुनील दुबे आगे बताते हैं कि आयुर्वेद का दृष्टिकोण "धातुओं" की अवधारणा पर जोर देता है जो शरीर के सात ऊतक से बने होते हैं। इन धातुओं में मुख्य रूप से "शुक्र धातु" जो प्रजनन ऊतक है, के असंतुलन से "धातु सिंड्रोम" होने की संभावना अधिक होती है। अत्यधिक तनाव, असंतुलित आहार और अस्वस्थ जीवनशैली जैसी कई आदतें इस संस्कृति-आधारित सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार कारक हो सकती हैं। इस स्थिति में, आयुर्वेदिक उपचार का उद्देश्य शारीरिक संतुलन को बहाल करना और धातुओं को मजबूत करना होता है।

उनका कहना है कि अश्वगंधा, शतावरी, सफ़ेद मूसली, शिलाजीत, गोक्षुरा और त्रिफला जैसी कई जड़ी-बूटियाँ और प्राकृतिक तत्व हैं, जो धातु सिंड्रोम के मामले में शरीर के लिए मददगार साबित होते हैं। दरअसल, धातु सिंड्रोम के मामले में, आयुर्वेदिक उपचार शरीर को पुनर्जीवित करने और समग्र शक्ति और जीवन शक्ति में सुधार करने पर केंद्रित है। यह पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य को फिर से जीवंत करने और शक्ति और सहनशक्ति में सुधार करने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा का लक्ष्य उन दोषों को संतुलित करना है जो इस यौन समस्या के लिए अधिक जिम्मेदार होते हैं।

उनका मानना है कि जब कोई मरीज अनुभवी पेशेवर के दिशा-निर्देशों के तहत अपना इलाज करवाता है तो आयुर्वेदिक उपचार दूसरों की तुलना में कई गुना बेहतर होता है। योग्य और अनुभवी क्लिनिकल आयुर्वेदिक सेक्सोलॉजिस्ट सभी यौन समस्याओं से निपटने के लिए सुरक्षित, प्रभावी और पूर्णकालिक विश्वसनीय आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करते हैं। अंतर्निहित चिकित्सा स्थितियों के आधार पर, वे रोगियों को उपचार प्रदान करते हैं जो पारंपरिक और आधुनिक आयुर्वेद व पारंपरिक चिकित्सा का संयोजन होता है। यह रोगियों के रामबाण भी साबित होता है, चुकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक व शुद्ध होता है।

टिप: अगर आप अपने यौन या गुप्त समस्या के लिए उपचार शुरू करना चाहते हैं, चाहे वह आयुर्वेदिक हो या एलोपैथिक, तो एक बार सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर से सलाह जरूर लें। दरअसल, सुरक्षित माहौल में अपनी सभी यौन समस्याओं को जड़ से खत्म करना ही सही फैसला होगा। योग्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से उपचार और सलाह आपकी समस्याओं से निजात दिलाने में हमेशा मददगार साबित होती है।

अभी के लिए बस इतना ही, फिर मिलते है एक नए सत्र के साथ...

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